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Abstract


भारतीय दर्शन जगत् में तत्त्वमीमांसा के साथ-साथ ज्ञानमीमांसा जिसे प्रमाण-मीमांसा भी कहा जाता है, को भी समान महत्त्व दिया गया है। यद्यपि इनके क्रम के विषय में विद्वान् एक मत नहीं हो पाये हैं। भारतीय दार्शनिक सम्प्रदाय में तत्त्वों की संख्या की भिन्नता के समान ही प्रमाणों की संख्या के विषय में भी भेद दृष्टिगत होता है। सांख्यदर्शन के प्रवर्तक महर्षि कपिल ने प्रमाणों की संख्या तीन स्वीकार की है जिसे आगे चलकर अन्य परवर्ती सांख्य आचार्यों ने भी स्वीकार किया है। ईश्वरकृष्ण ने सांख्यसूत्र के अपने प्रकरण ग्रंथ सांख्यकारिका में भी प्रमाणों की संख्या तीन ही स्वीकार की है-


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