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Abstract
गाँधी जी के राजनैतिक गुरू1 कहे जाने वाले गोपाल कृष्ण गोखले एक रचनात्मक नेता थे। आदर्शवादी होते हुए भी गोखले प्लेटोवादी अथवा यूटोपियाई (काल्पनिक) आदर्शवादी नहीं थे। राजनैतिक नेता के रूप में उनका ध्येय राजनीति को अध्यात्मिक रूप देना था। यही आदर्श आगे चलकर गाँधी जी ने अपनाया।वह साधन और साध्य दोनों की पवित्रता में विश्वास करते थे। गोपाल कृष्ण गोखले की धारणा थी कि अंग्रेजों के सम्पर्क से भारतवासी राजनैतिक कार्यों में दक्षता प्राप्त कर लेंगे। गोखले ब्रिटिश शासकों की न्याय और उदारता की भावना को उकसा कर उन्हें भारत को अपने साम्राज्य के भीतर ही स्वशासन देने को तैयार कराना चाहते थे। गोखले ने निरन्तर सरकार पर यह दबाव डाला कि वह जन कल्याणकारी कार्यों पर अधिक व्यय करें, सरकारी कर्मचारियों की संख्या घटाएं, सैनिक व्यय कम करें तथा आर्थिक और प्रशासनिक सुधार के लिए आवश्यक कदम उठायें। गोखले ने प्रायः शासक और शासित वर्ग के बीच एक मध्यस्थ की भूमिका निभाई। गोखले जी की स्वदेशी की धारणा बहुत व्यापक थी। बहिष्कार की उग्र कार्यप्रणाली उन्हें पसन्द नहीं थी। गोखले का राजनैतिक चिन्तन इस सन्दर्भ में असाधारण था कि उन्होंने ऐसे विचारो को जन्म दिया जो उस युग की परिस्थिति के अनुरूप थे।
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कुलश्रेष्ठड. र. (2019). भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के आरंभिक नियंता : गोपाल कृष्ण गोखले. European Journal of Business and Social Sciences, 7(4), 2268-2273. Retrieved from https://journals.eduindex.org/index.php/ejbss/article/view/1662