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Abstract

महाकतव भवभूति संस्कृ ि सातहत्य के एक मूधधन्य नाटककार हैं। इनके िीन प्रमुख नाटक
ग्रंि- उत्तररामचररिम्, महावीरचररिम् और मालिीमाधवम् उपलब्ध हैं। यद्यतप
महाकतव ने इन िीनों नाटकों में करुण,वीर,शृङ्गार आदद तभन्न-तभन्न रसों का
समायोजन दकया है ििातप अपने प्रतसद्ध नाटक उत्तररामचररिम् में इन्होंने एक ही
करुणरस को प्रधान माना है, शेष अन्य रस तनतमत्त भेद से पृिक्-पृिक् दृतिगि होिे हैं।
यद्यतप सातहत्यशास्त्र में सातहत्याचायों ने शृङ्गारादद नौ या इससे भी अतधक रसों की
संख्या स्वीकार करके उसे काव्य के चारुत्व के हेिु केरूप में उपस्िातपि दकया है। दकन्िु
महाकतव भवभूति ने शृङ्गारादद रसों का अन्िभाधव करुण रस में करिे हुए एकमात्र
करुण रस को ही प्रधान रूप से स्वीकार दकया है तजसकी िार्कध क तसतद्ध सहज रूप से
नहीं हो सकिी, दकन्िु इन्होंने अपने रचनावैतचत्र्य से इसे तसद्ध करने का सािधक प्रयास
दकया है। धरािलीय दृति से देखने से िो ऐसा प्रिीि होिा है दक शृङ्गारादद रसों को
तभन्न-तभन्न रूप में स्वीकार करके उसकी अनेकिा को स्वीकार करना िकधसंगि प्रिीि
होिा है दकन्िु महाकतव भवभूति के उत्तररामचररिम् नाटक का श्रवण अिवा अध्ययन
करने के उपरान्ि ऐसा प्रिीि होिा हैदक वास्िव में काव्य जगि् में एक ही रस मुख्य
रूप से तवद्यमान है।

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